नम आँखें मैंने देखीं पुतलियों में ठहरा हुआ जल बरस जाना चाहता था लेकिन बस एक बूँद काँपी और गुम हुई कि जैसे आँखों ने पी लिया हो अपना ही जल
नम आँखें मैंने देखीं
हिंदी समय में बसंत त्रिपाठी की रचनाएँ